tag:blogger.com,1999:blog-48632865416230443242024-02-19T16:11:26.660+05:30शीर्षक..साथ चलने की एक ज़िद जो छूट कर भी छूटी नहीं, फिर साथ है...विवेक.http://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-4863286541623044324.post-43320414619240487862010-11-19T18:45:00.003+05:302010-11-19T22:24:42.648+05:30किलों को जीतने की जगह ध्वस्त कर देने की उम्मीद भरी कविता...आज यहाँ 'शीर्षक' में वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना की ताज़ा कवितायें. काफी अरसा हुआ नरेश सक्सेना की एक कविता पढ़ी थी, 'सीढ़ी'.
मुझे एक सीढ़ी की तलाश है
सीढ़ी दीवार पर चढ़ने के लिए नहीं
बल्कि नींव में उतरने के लिए
मैं क़िले को जीतना नहीं
उसे ध्वस्त कर देना चाहता हूँ।
"मैं क़िले को जीतना नहीं / उसे ध्वस्त कर देना चाहता हूँ....." छोटी सी कविता की टनकती हुई स्पष्टता और विवेक.http://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4863286541623044324.post-72611764769139848172010-11-05T10:36:00.000+05:302010-11-05T10:36:54.063+05:30प्रसाद और प्रेमचंद से छूटा काशी...काशी का अस्सी
काशीनाथ सिंह का नाम हिन्दी कहानी, उपन्यास और पिछले दिनों में संस्मरण विधा में अपनी विशिष्ट शैली के लेखन से जान फूंक देने के लिए समादरित है. पिछले दिनों में ही काशी जी का उपन्यास 'रेहन पर रग्घू' काफी चर्चा में रहा है, यहाँ इस बार प्रस्तुत है उनके उपन्यास 'काशी का अस्सी' पर मूलतः 'बनास' के लिए लिखा गया एक आलेख..
काशी का अस्सी:
उपन्यास की शक्ल में एक बेचैन विवेक.http://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4863286541623044324.post-69029568395792879702010-10-25T09:39:00.007+05:302010-10-25T13:09:08.725+05:30ताज़े फूल की तीखी खुश्बू सी...इस अंक में कवितायेंझारखण्ड की पथरीली पृष्ठभूमि से आने वाले युवा कवि अनुज लुगुन के पास अपने देखे-महसूसे संसार की सचाई है, विश्लेषण की समझ है और उसे कविता में बांटने का शिल्प वे अर्जित कर रहे हैं. पिछले अंक में आप ने अनुज लुगुन की कविताओं पर हमारे साथी और युवा आलोचक आशीष त्रिपाठी का नोट पढ़ा, अनुज का संक्षिप्त सा परिचय भी आप पिछली पोस्ट में पढ़ ही चुके है, लीजिए इस पोस्ट में सीधे अनुज लुगुन से संवाद करिये.. उनकी विवेक.http://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4863286541623044324.post-40996509625998353062010-10-21T15:23:00.014+05:302010-10-22T23:12:55.443+05:30ताज़े फूल की तीखी खुश्बू सी कविता... मुहावरे में कहना हो तो बहुत चलता हुआ मुहावरा है, ज़मीन से जुड़े हुए कवि, पर यह सिर्फ मुहावरे की बात नहीं, यह बिलकुल सीधी सी सच्चाई है, अनुज लुगुन ज़मीन से जुड़े हुए कवि हैं. अनुज लुगुन हिंदी कविता के लिए तुलनात्मक रूप से बहुत नया नाम हैं, लगभग 20-21 बरस के इस युवा को इधर कुछेक पत्रिकाओं में छिट-पुट पढ़ा गया है पर अभी उन की ज्यादा कवितायेँ सामने नहीं आयी हैं. बनारस हिंदू विश्विद्यालय से विवेक.http://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4863286541623044324.post-67556398619368862652010-10-07T16:24:00.025+05:302010-11-26T12:28:41.877+05:30कविता में किताबों की बातें..हिंदी कविता के दो बड़े नाम इस बार एक साथ. चंद्रकांत देवताले और कुमार अम्बुज. एक कवि की निगाह में दूसरे की कविता. अम्बुज जी और देवताले जी दोनों ही मेरे प्रिय कवियों में हैं. देवताले जी से तो मेरे कविता से परिचय की शुरुआत का ही परिचय है.. कह सकता हूँ कि हिंदी कविता से मेरे परिचय का झरोखा खोलने वालों में देवताले जी हैं.. गुरु की गरिमा के साथ वे हमारे अपने हैं. अम्बुज जी की कवितायेँ हमेशा मेरे लिए विवेक.http://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4863286541623044324.post-40748898459158945642010-09-20T13:40:00.020+05:302010-09-25T12:24:11.289+05:30विनोद कुमार शुक्ल : कम बोलने वाले कवि की देर तक गूँजती कविता..कई बार कविता के नाम पर होता ये है कि कवि अधिक बोलता है, कविता कुछ बोलना चाहती ही रह जाती है. विनोद कुमार शुक्ल हिंदी कविता के एक ऐसे कवि हैं जिनको कम बोलने और देर तक गूंजने वाली कविता के लिए पहचाना जाता है. इधर की कविता में विनोद कुमार शुक्ल ऐसे कवि हैं जिनकी कविताओं से परिचय के बिना हिंदी कविता का परिचय ही पूरा नहीं होता, गद्य लेखक के रूप में भी उपन्यास हो या कहानी, उनके गद्य को लेकर, शिल्प को विवेक.http://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-4863286541623044324.post-34038370505287126792010-09-09T11:44:00.024+05:302010-09-14T12:22:35.345+05:30नियाज़ हैदर की संगत में.. जावेद सिद्दीकीशायर, लेखक और रंगकर्मी की तरह नियाज़ हैदर को जानने वाले कुछ लोग तो ज़रूर उन्हें करीब से जानते ही होंगे पर नियाज़ हैदर का नाम नई पीढ़ी के लोगों के लिए हो सकता है कुछ अनसुना सा लगे या फिल्मों के इतिहास और पटकथा, संवादों आदि के बारे में रूचि रखने वाले कुछ लोग उन्हें गहरे से न सही, पर कुछ-कुछ जानते भी हों, फिर भी इतना तो तय है कि परदे के पीछे के लोगों को दुनिया परदे पर आने वालों की तुलना में तो बहुत कम विवेक.http://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4863286541623044324.post-54361079163827106962010-09-04T10:52:00.013+05:302010-09-06T14:07:22.039+05:30अष्टभुजा शुक्ल की कवितायेँ..'अष्टभुजा शुक्ल' हिंदी के वरिष्ठ और चर्चित कवि हैं. पिछले दिनों फेसबुक की एक चर्चा में मुझ से पूछा गया कि ये 'अष्टभुजा शुक्ल' कौन हैं? दुर्भाग्य से तात्कालिक सन्दर्भ फुटबाल के भविष्य-(वक्ता)बकता पॉल आक्टोपस का था. एक हिंदी कवि को वैसे भी इन्टरनेट का समुदाय अभी थोड़ा कम-कम ही जानता है, यूँ ही बात उठी... 'वसुधा-85' में अष्टभुजा शुक्ल को पढ़ते हुए लगा कि क्यों न अष्टभुजा जी की कविताओं को यहाँ पोस्ट विवेक.http://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4863286541623044324.post-61451558757477072172010-08-30T16:49:00.004+05:302010-08-30T18:00:01.966+05:30नई कोशिश..'शीर्षक' की शुरुआत के साथ ही टिप्पणियों के खेल से पैदा खिन्नता ने कुछ दिनों के लिये मुझे फिर पीछे धकेल दिया था, सचमुच सोचे हुए के ठीक विपरीत, ब्लॉग पर साहित्यिक मंच के मेरे विचार को ध्वस्त कर के चर्चायें न सिर्फ असाहित्यिक हो चली थीं बल्कि बेहद फूहड़ व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप के लिए इस ब्लॉग का उपयोग मुझे दुखद लगा और मैं कुछ दिनों के लिए शुतुरमुर्ग कि तरह गर्दन रेत में डाले बैठा रहा, शुतुरमुर्ग विवेक.http://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4863286541623044324.post-21740039539142650512010-05-28T17:41:00.024+05:302010-06-01T17:11:02.849+05:30कुछ सूफियाना सा..इस बार कुछ शेर हैं, जिन से बात शुरू करता हूँ..तू सुन के मेरी इल्तिज़ा क्या करेगाजो पहले से सोचा हुआ था, करेगा ... औरआइना तुम भी हो, आइना मैं भी हूंदेखूं तो आती है लौट कर रोशनीमौला ऐसा सलीका हमें बख्श देहम लुटाते रहें उम्र भर रोशनी... ...शेर हमारे साथी योगेन्द्र मिश्र की ग़ज़ल से हैं.योगेन्द्र, रीवा के हमारे युवा समूह में बहुविध चर्चित नाम रहे हैं, बहुत सारे क्षेत्रों में योगेन्द्र की प्रतिभा को विवेक.http://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-4863286541623044324.post-444818777204716612010-05-11T08:17:00.000+05:302010-05-13T11:52:12.763+05:30एक रंग जो ठहरा हुआ सा बस लगता है...बहुत दिनों से इंतजार में हूँ, इंतजार कुछ लंबा ही होता जा रहा है. मज़ा ये भी है कि ये तक पता नहीं कि इंतज़ार किसका है. जुम्मा-जुमा कायदे से 2 पोस्ट भी नहीं लिखीं कि लगा, कि कुछ मज़ा आ जाए ऐसा कुछ समझ में आए तो पोस्ट किया जाए... ब्लॉग शुरू करने के पहले जो कुछ योजनायें थीं वो कुछ बचकानी सी लगने लगीं. उत्साहित हो कर ब्लाग बना तो लिया, पहले भी-2 साल पहले, दो बार बनाया था. संकोच में बंद कर दिया.आम तौर विवेक.http://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-4863286541623044324.post-58486551583494215982010-04-30T13:52:00.000+05:302010-05-04T12:15:56.284+05:30सपने के पीछे ज़िद..शीर्षक हमारा सपना था, हम यानि ओम, आशीष और मैं. ओम तब ओम पथिक हुआ करते थे, आशीष तब कुमार आशीष होते थे और मैं खुद क्षितिज विवेक हुआ करता था. ये सपना मध्यप्रदेश के रीवा में तब के हम बच्चों की आँखों में अंखुआया था.रीवा जो तब कस्बानुमा शहर था और शायद अब भी, वैसे तो यह मध्य्रप्रदेश के नक्शे में संभागीय मुख्यालय था पर सतना जिला मुख्यालय तब भी हमसे (रीवा से) अधिक विकसित,व्यवस्थित और अधिक व्यावसायिक शहर विवेक.http://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-4863286541623044324.post-69019397254567014992010-04-26T13:47:00.000+05:302010-05-04T00:35:11.234+05:30पहला ख़त..पहला ख़त है, बहुत सोचा कि कहाँ से शुरू करूं... सोचते हुए बहुत सी बातें और बहुत से मित्र याद आए, ओम द्विवेदी मेरे पुराने मित्र हैं, पहले से ब्लाग की दुनिया में टहल-घूम कर रहे हैं, अपनी बक-झक तो मैं आगे करुंगा ही. सोचा कि आज शुरुआत क्यों न एक ब्राह्मण से ही कर लूं..... वैसे ओम को ब्लाग की दुनिया व्यंग्यकार के रूप में ज्यादा जानती है पर मैं उनके गीतकार पर रीझा हुआ हूँ... आज उनकी ये ग़ज़ल पेशेनज़र विवेक.http://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.com8