रंग और उजास

रंग और उजास

सोमवार, अप्रैल 26, 2010

पहला ख़त..


पहला ख़त है, बहुत सोचा कि कहाँ से शुरू करूं... सोचते हुए बहुत सी बातें और बहुत से मित्र याद आए, ओम द्विवेदी मेरे पुराने मित्र हैं, पहले से ब्लाग की दुनिया में टहल-घूम कर रहे हैं, अपनी बक-झक तो मैं आगे करुंगा ही. सोचा कि आज शुरुआत क्यों न एक ब्राह्मण से ही कर लूं..... वैसे ओम को ब्लाग की दुनिया व्यंग्यकार के रूप में ज्यादा जानती है पर मैं उनके गीतकार पर रीझा हुआ हूँ... आज उनकी ये ग़ज़ल पेशेनज़र है.

सोते में चीख़ता है सुल्तान आजकल

टूट पड़ा आँगन में आसमान आजकल।
साँसों में उठ रहा है तूफान आजकल।

कबूतर ने जने हैं कई नन्हें कबूतर,
डर-डर के बाज भरता है उड़ान आजकल।

फ़क़ीर के कदमों में है रफ़्तार कुछ अधिक,
सोते में चीख़ता है सुल्तान आजकल।

पड़ोसी का घर खंगालते खंजर लिए हुए,
तकिए के नीचे छिप गया शैतान आजकल।

मुर्दा से दिखे चेहरे जो भी दिखे यहाँ,
हँसने लगा है बस्ती में शमशान आजकल।

पहुँचा है माँ की कोख तक बाज़ार का दख़ल,
सामान की मानिन्द हैं नादान आजकल।

आप के लिए ओम के ब्लाग का पता आगे अटैच कर सकूंगा... फिलहाल तो बताएं ग़ज़ल कैसी है.
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